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तीन बूँद हँड़िया, तीन बूँद खून: झारखण्ड/मुंडारी लोक-कथा

पहले सारा देश जंगलों से भरा हुआ था। लोगों ने जंगल में ही घर बनाकर गाँव बसा लिए थे। जंगल में खलिहान बने हुए थे, जहाँ लोग अगहन में दँवरी करते थे। एक दिन एक आदमी जंगल के खेत में धान काटने गया। वहाँ सफेद कपड़ा पहने एक आदमी दिखाई पड़ा। जैसे-जैसे वह खेत में पहुँचता गया, वैसे ही वैसे वह आदमी आगे बढ़ता ही गया।

कुछ दूर जाने के बाद वह खड़ा हो गया और किसान से बोला, “जिस दिन तुम दँवरी करना, उस दिन तुम सखुआ के दोने में तीन बूँद हँड़िया (देशी शराब) और तीन बुँद खून मेरे नाम से वहाँ गिरा देना। तुम्हारा धान बहुत होगा। मेरा नाम तपा है।” इतना कहकर वह गायब हो गया।

किसान ने यह बात अपनी स्त्री से बता दी। स्त्री ने दूसरे ही दिन हँड़िया बनाई। किसान दँवरी शुरू करने के दिन सवेरे हाथ-मुँह धोकर और नहाकर हँड़िया और मुर्गा लेकर जंगल में पहुँचा। उस आदमी को पहले की तरह ही उसने देखा। ज्यों-ज्यों किसान आगे बढ़ता गया, त्यो-त्यों बह भी बढ़ता गया। थोड़ी दूर जाकर वह जंगल में गायब हो गया।

किसान ने आगे जाकर देखा, कुछ आदमी आग ताप रहे थे। उसने पूछा, “आप लोगों ने तपा को इधर से जाते हुए देखा है?”

उन लोगों ने बताया कि वही तपा है, जो आग ताप रहा है। किसान ने उसके आगे हँड़िया और मुर्गा रखा। तपा ने कहा, “अरे, हमने तो तुम से तीन बूँद माँगा था और तुम घड़ा-भर हँड़िया और पूरा मुर्गा ले आए।"
किसान ने तब वहाँ मुर्गे का तीन बुँद खुन और तीन बूँद हँड़िया वहाँ गिरा दिया।
इसके बाद तपा ने कहा, “अब सारा हँड़िया और मुर्गा तुम्हारा है। इन्हें लेकर लौट जाओ।" और वह वहीं गायब हो गया।

आदमी ने लौटकर दँवरी की। सचमुच धान खूब हुआ। और वह आदमी धनी हो गया। लोग आज भी धान की दँवरी करने से पहले तीन बूँद हँड़िया और तीन बूँद खून तपा के नाम से गिराते हैं।

(सत्यनारायण नाटे)

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साभारः लोककथाओं से साभार

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1 Comments

Farhat

25-Nov-2021 03:17 AM

Good

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